Thursday, 31 August 2017

मज़हब की सरहदें

होती अगर बिकाऊ तो, सरहद खरीद लेता मैं 
लाल रंग की उस मिट्टी में , खुशियां बीज देता मैं 
देखता कि उस मज़हब को, वो मिट्टी क्या सिखलाती है 
नफरत की उस हवा से, शहीद खींच लेता मैं |

सीख लेते हम उनसे भी कुछ, जो रब के और हम सबके हैं,
प्यार बांटते, मिलके खाते, आप हम भी रब के हैं |
मिलेंगे उधार, खुशियों के औज़ार, बच्चे चलाना जानते हैं,
मज़हब सिखाता रब की पूजा, ऐसा हम क्यों मानते हैं |

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