Friday 29 December 2017

... कभी तो ज़मीं पे आ ...

सोचता हूँ कि छुपा लूं तुम्हे इस दुनिया से
एक चाँद बहुत है इस धरती के लिए
कभी गुस्सा होती हो तो लहरों का उफ़ान सा आता है
एक लहर बहुत है इस बस्ती के लिए |

चाँद चमक सी मुस्कान जो अब साथ है मेरे
आज कीमत ज़्यादा है, ज़िन्दगी इस सस्ती के लिए
थोड़ी पूछताछ है अब हमारी इस शहर में भी
तुम किनारा सा हो इस कश्ती के लिए |

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