Monday, 13 November 2017

लिखता मैं

मिलते जो आप तो, एक अंदाज़ लिखता मैं,
छोटे से उन लम्हो में , एक ख्वाब लिखता मैं।
अगर पूछ लेते कि याद करते हो क्या हमको भी कभी,
तुमको हर एक पल का हिसाब लिखता मैं।

 कुछ शिकायत होती अगर उनको, आज अपने नूर पे,
 ‎कलम से तारीफ़, लाजवाब लिखता मैं।
 ‎कुछ अक्षर ढूँढता कीमती और सुनहरे से कभी,
 ‎खुद बिकता और उनसे उनका नाम लिखता मैं।

अ से लिखता नाम मैं उनका, व को सजाकर रखता मैं,
न की भी हाँ थी , इन अक्षरों की महफ़िल में,
एक ग़ज़ल इस प्यार की त से भी लिखता मैं।

 ‎

No comments:

Post a Comment