Friday, 20 November 2015

ज़रूरत इंसान बनने की

ज़रूरत है बोल में अदब की
एक प्रेरणा और एक रब की
नेक विचार और एक मुस्कान की
असीमित सोच और ध्यान की

ज़रूरत नहीं बड़ी पहचान की
किसी से नफरत और बेईमान की
न किसी से धोके की
कीमत नहीं चलते को रोके की

ज़रूरत मदद को तैयार रहने की
अपनी गलती पे सॉरी कहने की
ज़रूरत अच्छे चरित्र की
और अच्छे मित्र की |

Wednesday, 4 November 2015

Pencil Post





*Most of the sketches are copied from some other sketch or an image.

Wednesday, 21 October 2015

सीख

सीख

ढूंढ रहे हैं आज भी, मज़हब के किनारे वो |
कश्ती मट्टी की और चप्पू में आग लगाए बैठे हैं |
दूसरी नाँव में आते लोग, अन्जान से तो लगते नहीं |
पर किनारे की चाह में, मझधार लगाए बैठे हैं |

उड़ रहे हैं परिंदे, नयी हवा की चाह में |
झुण्ड में उन्होंने जोड़ लिए, मिलते पक्षी राह में |
पंख फैला, उड़ान भर, कर रहे किनारे की खोज|
बहुत अलग और विपरीत सी है, इंसान और पक्षी की सोच |



खिलते हुए फूल, मुस्कान किसी की वजह हैं |
रंग बिखेर, खुशबु फैलाये, बनायी अदभुत ये जगह है |
समझ जाते अगर सब लोग, कुदरत के इशारे तो |
मिल गए होते सबको, मज़हब के किनारे तो |
मिल गए होते सबको, मज़हब के किनारे तो |



image source : http://hdwallpapers.cat/wallpaper/sunset_nature_birds_sea_boat_hd-wallpaper-1835946.jpg

Saturday, 10 October 2015

journey to bangalore

सफर

दूर खड़े थे, अंजान बड़े थे
नयी नयी थी अभी पढ़ाई
टेंशन में सब पड़े थे
चढ़नी है 4 साल की चढ़ाई

घर से आये कर तैयारी
नयी नयी थी सबकी यारी
बड़े थे सपने, नयी थी सोच
ऊपर से रैगिंग का खौफ

रूड़की में रहके समझ थी आरी
इंजीनियरिंग है बहुत ही भारी
अंजान सा पेपर करे बुरे हाल
निकल गया था पहला साल

आ गए थे दूसरे साल में
फिर भी थे उसी हाल में
पेपर ना सिलेबस से आये
अटेंडेंस से सब घबराये

तीसरा साल था फुटबॉल में
काउंटर स्ट्राइक के जंजाल में
कोई पढ़ाई, कोई करे चिल
फायर इन the होल, एंड किल

सता रहा था जॉब का डर
छोड़ तैयारी ,GATE का पढ़
पहुँच गए थे राजधानी
अंकुश सर की थी याद कहानी

हॉस्टल गिरनार , और जिआ सराय
लॉजिक प्रोग्रामिंग समझ ना आये
थी सिखलाई, मेहनत कराई
कुछ मिले दोस्त, और कुछ भाई

अभी भी लाइफ उसी जोर में
पहुँच गए बैंगलोर में
9-5 का अब है काम
और 2 दिन पूरा आराम

Thursday, 8 October 2015

एक

एक 
नया है दौर, नयी है सोच 
महकने वाले फूल नहीं खिलते
डरे डरे से रहते हैं लोग
क्योंकि जज़्बे कहीं उधार नहीं मिलते

देश भी अपना, वेश भी अपना
कभी तो बात करो एकता की
खिलो, महको, बनादो सुन्दर
इस देश में ताकत है अनेकता की