Wednesday, 30 November 2016

कविता तुम हो।

मैं कवी उस बाग़ का,
महकते फूल, भवरों के राग  सा।
जहां हर फूल की एक अलग कहानी ,
तारीफ़ तुम्हारी, आज उनकी ज़ुबानी।

फूलों सी मुस्कान तुम्हारी,
कोपल सी पहचान हमारी।
सुन रहे पक्षी , मधुर संगीत प्रेमी,
मैं गीत तुम्हारे गाता जाऊं।

सोच विचार कर शब्द लिखू मैं ,
इस पन्ने को कई रंग दिखलाऊँ।
तुम भी मेरी इस कविता सी हो,
लिखता जाऊं , लिखता जाऊं ....

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